Manu Smriti
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ते तं अर्थं अपृच्छन्त देवानागतमन्यवः ।देवाश्चैतान्समेत्योचुर्न्याय्यं वः शिशुरुक्तवान् ।2/152

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस कारण से चचा क्रुद्ध होकर देवताओं से पूछने गया। देवताओं ने उत्तर दिया कि उस बालक (शिशु) ने अच्छा कहा।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
आगतमन्यवः ते उक्त संबोधन को सुनकर गुस्से में आये हुए उन पितरों ने तम् अर्थं देवान् अपृच्छन्त उस ‘पुत्र’ सम्बोधन के अर्थ अथवा औचित्य के विषय में देवताओं - बड़े विद्वानों से पूछा च और तब देवाः समेत्य एतान् ऊचुः सब विद्वानों ने एकमत होकर इनसे कहा कि शिशुः वः न्याय्यम् उक्तवान् बालक आंगिरस ने तुम्हारे लिए ‘पुत्र’ शब्द का सम्बोधन ठीक ही किया है ।
 
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