Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद पढ़ाने वाला ब्राह्मण आयु में चाहे, जितना छोटा हो परन्तु वह गुरु ही कहलाता है। क्योंकि ज्ञान से ही जीवात्मा का (वृद्धत्व) बड़प्पन है, आयु से नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्राह्मस्य जन्मनः कत्र्ता वेदाध्ययन के जन्म को देने वाला स्वधर्मस्य च शासिता और अपने धर्म का उपदेश देने वाला विप्रः विद्वान् बालः अपि बालक अर्थात् अल्पायु होते हुए भी धर्मतः धर्म से वृद्धस्य पिता भवति शिक्षा प्राप्त करने वाले दीर्घायु व्यक्ति का पिता अर्थात् गुरू के समान होता है ।