Manu Smriti
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एवं यः सर्वभूतेषु पश्यत्यात्मानं आत्मना ।स सर्वसमतां एत्य ब्रह्माभ्येति परं पदम् ।।12/125

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो मनुष्य इस विधि से सब प्राणियों में आत्मा को व्यापक देखकर सबको अपनी आत्मा के तुल्य समझता है वह समदर्शी होकर ब्रह्मानन्द को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इसी प्रकार समाधियोग से जो मनुष्य सब प्राणियों में परमेश्वर को देखता है वह सबको अपने आत्मा के समान प्रेमभाव से देखता है वही परमपद जो ब्रह्म-परमात्मा है उसको यथावत् प्राप्त होके सदा आनन्द को प्राप्त होता है
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो इस प्रकार सब प्राणियों में परमात्मा को देखता है वह उससे आत्मा के साथ सबकी समता को समझकर परम पद ब्रह्म को प्राप्त होता है।
 
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