Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यह आत्मा पंच भूतों और उसी मूर्तियों में व्यापक होेकर जगत् को मनुजी उत्पत्ति और नाश को चक्रवत् कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह परमात्मा पञ्च-महाभूतों से सब प्राणियों को युक्त करके अर्थात् उनकी उत्पत्ति करके उत्पत्ति, वृद्धि और विनाश करते हुए सदा चक्र की तरह संसार को चलाता रहता है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वह ब्रह्म पांच भूतों में व्यापक होकर सब प्राणियों को सर्वदा जन्म, वृद्धि और क्षय-द्वारा चक्र के समान घुमाया करता है।