Manu Smriti
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एतं एके वदन्त्यग्निं मनुं अन्ये प्रजापतिम् ।इन्द्रं एके परे प्राणं अपरे ब्रह्म शाश्वतम् ।।12/123

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
उस पुरुष को कोई मनु, कोई अग्नि, कोई प्रजापति, कोई इन्द्र, कोई प्राण और कोई अविनाशी ब्रह्म कहते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इस परमात्मा (12/122) को कोई ’अग्नि’, कोई प्रजापति परमात्मा को ’मनु’ कोई ’इन्द्र’, कोई ’प्राण’, दूसरे कोई शाश्वत ’ब्रह्म’ कहते हैं ।
टिप्पणी :
’स्वप्रकाश होने से अग्नि’, विज्ञानस्वरूप होने से ’मनु’ , सबका पालन करने और परमैश्वर्यवान होने से इन्द्र, सबका जीवनभूत होने से प्राण और निरन्तर व्यापक होने से परमेश्वर का नाम ब्रह्म है । (स.प्र. प्रथम समु.) महर्षि द्वारा प्रमाण रूप से अन्यत्र उद्धत- (1) प. वि. 13, (2) द. ल. भ्रा. नि. 196, (3) उपदेशमञ्जरी 52, (4) द. शा. 53 (5) द. ल. वेदांक 126 । टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस परमब्रह्म को लोग अग्नि, मनु, प्रजापति, इन्द्र, प्राण और शाश्वत ब्रह्म के नाम से पुकारते हैं। अर्थात् इसी एक ब्रह्म के यह अनेक नाम हैं।
 
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