Manu Smriti
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प्रशासितारं सर्वेषां अणीयांसं अणोरपि ।रुक्माभं स्वप्नधीगम्यं विद्यात्तं पुरुषं परम् ।।12/122

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब पर आज्ञा करने वाला छोटे से भी छोटा सोने के तुल्य प्रकाशवान् स्वप्न बुद्धि के समान ज्ञान करके ग्रहण करने के योग्य जो पुरुष है उसको पुरुषोत्तम (सबसे बड़ा) जानो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो सबको शिक्षा देने हारा, सूक्ष्म से सूक्ष्म, स्वप्रकाश स्वरूप, समाधिस्थ बुद्धि से जानने योग्य है, उसको परम पुरुष जानना चाहिए । (स. प्र. प्रथम समु.)
टिप्पणी :
महर्षि द्वारा अपने ग्रन्थों में यह श्लोक निम्न स्थानों पर प्रमाण या पदांश के रूप में उद्धत किया गया है- (1) द. शा. 53 (2) उपदेश-मञ्जरी 52, (3) द. ल. वेदांक 126, (4) ऋ. प. वि. 13, (5) द. ल. भ्रा. नि. 196 (6) ऋ. भा. भू. 111 । टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो सबका शिक्षक अति सूक्ष्म से भी सूक्ष्म, प्रकाशस्वरूप सेनाभि द्वारा जानने योग्य है उसी को परम पुरुष समझना चाहिये।
 
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