Manu Smriti
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आत्मैव देवताः सर्वाः सर्वं आत्मन्यवस्थितम् ।आत्मा हि जनयत्येषां कर्मयोगं शरीरिणाम् ।।12/119

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब देवता आत्मा में हैं और सब पदार्थ आत्मा में स्थिर हैं और परमात्मा ही जीवों के कर्मों के अनुसार उन सब शरीरों को उत्पन्न करता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
आत्मा अर्थात् परमेश्वर ही सब व्यवहार के पूर्वोक्त देवताओं को रचनेंवाला, और जिसमें सब जगत स्थित है, वही सब मनुष्यों का उपास्देव तथा सब जीवों को पाप-पुण्य के फलों का देनेहारा है ।
टिप्पणी :
महर्षि द्वारा आशिंक या केवल प्रमाण रूप में यह श्लोक निम्न अन्य स्थानों पर उद्धत है- (1) द. ल. भ्रा. नि. 172, (2) द. ल. वे. ख. 24, (3) द. शा. 53, (4) ऋ. प. वि. 13, (5) ल. वे. अंक 125 । टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
परमात्मा ही सब देवों का आधार है सब चीजें परमात्मा में ही स्थित हैं, परमात्मा ही इन सब प्राणियों के कर्मों के फल को देता है।
 
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