Manu Smriti
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सर्वं आत्मनि संपश्येत्सच्चासच्च समाहितः ।सर्वं ह्यात्मनि संपश्यन्नाधर्मे कुरुते मनः ।।12/118

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
शान्ति से बैठकर सब संसार के कार्य और कारण पदार्थों को परमात्मा के आधीन समझे और ईश्वराधीन प्रत्येक वस्तु के समझने से मन अधर्म नहीं कर सकता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो सावधान पुरुष असत्कारण और सत्कार्यरूप जगत् को आत्मा अर्थात् सर्वव्यापक परमेश्वर में देखे, वह कभी अपने मन को अधर्मयुक्त नहीं कर सकता, क्योंकि वह परमेश्वर को सर्वज्ञ जानता है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
एकाग्र चित्त होकर (सत्) अपरिवर्तनशील और (असत्) परिवर्तनशील सबको परमात्मा में देखें जो परमात्मा में सब को देखता है उसका मन अधर्म में नहीं लगता।
 
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