Manu Smriti
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अव्रतानां अमन्त्राणां जातिमात्रोपजीविनाम् ।सहस्रशः समेतानां परिषत्त्वं न विद्यते ।।12/114

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिन्होंने ब्रह्मचर्यादि व्रतों को न किया और न वेद शास्त्रों को अर्थ सहित पढ़ा हो जो केवल जाति मात्र से जीविका प्राप्त करता हो ऐसा सहस्त्रों के मिलने से परिषद अर्थात् व्यवस्थापक सभा नहीं कहलाती।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ब्रह्मचर्य, सत्यभाषण आदि व्रत वेदविद्या वा विचार से रहित जन्ममात्र से शूद्रवत् वर्तमान है, उन सहस्रों मनुष्यों के मिलने से भी सभा नहीं कहाती
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अव्रत अर्थात् उत्तरदायित्व रहित, अमंत्र अर्थात् अविद्वान और जाति मात्र पर अभिमान करने वाले हजारों के मिलने से भी सभ नहीं बनती।
 
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