Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तीनों वेद की एक शाखा को पढ़ने वाला श्रुति स्मृति के अनुकूल शास्त्र वाला, मीमांसा शास्त्रोक्त इन सब का ज्ञाता ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, दश से ऊपर ही वह परिषद कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उन दशों में इस प्रकार के विद्वान् होवें- तीन वेदों के विद्वान् चौथा हेतुक अर्थात कारण-अकारण का ज्ञाता, पांचवा तर्की=न्यायशास्त्रवित, छठा-निरुक्त का जानने हारा, सातवां- धर्मशास्त्रवित आठवां- ब्रह्मचारी, नववां-गृहस्थ, और दशवां वानप्रस्थ, इन महात्माओं की सभा होवें ।
टिप्पणी :
’इस सभा में चारों वेद, न्यायशास्त्र, निरुक्त धर्मशास्त्र आदि के वेत्ता विद्वान् सभासद् हों, परन्तु वे ब्रह्मचारी, गृहस्थ और वानप्रस्थ हों, तब वह सभा कि जिसमें दश विद्वानों से न्यून न होने चाहिएँ ।’टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दशावरा समिति में यह लोग होने चाहिये:-
त्रैविद्य अर्थात् ऋक्, यजु, साम विद्याओं में से हर एक का जानने वाला एक-एक -