Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. वेदपारगः आचार्यः वेद में पारंगत आचार्य विधिवत् विधिपूर्वक गायत्र्या गायत्री संस्कार - उपनयनसंस्कार से अस्य इसकी यां जातिम् उत्पादयति जाति - अर्थात् वर्ण या आत्मिक स्वरूप को बनाता है सा सत्य सा अजरा - अमरा वही इसकी वास्तविक जाति - वर्ण है, वही जाति शरीर जन्म की अपेक्षा क्षीण न होने वाली और स्थिर रहने वाली है अर्थात् शिक्षा - प्रदान करके निर्धारित किये गये वर्ण के संस्कार परजन्मों तक रहते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
परन्तु वेदज्ञ आचार्य इस ब्रह्मचारी की जो जाति (वर्ण) विधिपूर्वक सावित्री अर्थात् गायत्री वा वेदमाता द्वारा बनाता है, वह सत्य है और वही अजर अमर है।