Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
दश के ऊपर अथवा तीन ऊपर के ब्राह्मणों का जो समूह है वह श्रेष्ठ कहलाता है। वह जिस धर्म को कहे वही करना चाहिये।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
न्यून से न्यून दश विद्वानों अथवा बहुत न्यून हों तो तीन विद्वानों की सभा जैसी व्यवस्था करे, उस धर्म अर्थात् व्यवस्था का उल्लंघन कोई भी न करे ।
टिप्पणी :
’गृहस्थ लोग छोटों, बड़ो वा राजकार्यों के सिद्ध करने में कम से कम दश अर्थात् ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेदज्ञ, हैतुक(नैयायिक), तर्ककर्ता, नैरुक्त=निरुक्तशास्त्रज्ञ, धर्माध्यापक, ब्रह्मचारी, स्नातक और वानप्रस्थ विद्वानों, अथवा अतिन्यूनता करे तो तीन वेदवित् (ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेदज्ञ) विद्वानों की सभा से कर्त्तव्याकर्त्तव्य, धर्म और अधर्म का जैसा निश्चय हो, वैसा ही आचरण किया करे। ’टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
दश श्रेष्ठ पुरुषों की जो दशवरा सभा ¼Decemvirate½ या तीन श्रेष्ठ पुरुषों की जो त्र्यवरा सभा ¼Triumvirate½ (वृत्तस्था) किसी विशेष काम के लिये चुनी गई हो उसके निश्चय को नहीं टालना चाहिये।
टिप्पणी :
नोटः-यहाँ धर्म की तीन कोटियाँ की गईः-
(1) वह जो वेदशास्त्र में दिया हुआ है।
(2) वह जिसकी व्यवस्था शिष्ट पुरुष दे दें।
(3) वह जिसकी लोकमत द्वारा चुनी हुई दस या तीन श्रेष्ठ पुरुषों की सभा निश्चय करें।