Manu Smriti
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अनाम्नातेषु धर्मेषु कथं स्यादिति चेद्भवेत् ।यं शिष्टा ब्राह्मणा ब्रूयुः स धर्मः स्यादशङ्कितः ।।12/108

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो धर्म वेद शास्त्र में संक्षेप रीति पर हों और उसकी व्याख्या इस धर्म शास्त्र से ज्ञात न हो तो जिस प्रकार परमात्मा ब्राह्मण व्यवस्था दे उनको संशय त्याग कर धर्म समझना।
टिप्पणी :
धर्म की व्यवस्था देने के हेतु सदैव विद्वान् ब्राह्मण को अधिकार दिया परन्तु यहाँ पर गुण कर्म से ब्राह्मण लेने चाहिये उत्पत्ति से नहीं जिसको मनुजी ने स्पष्ट रीति से दिखला दिया है अतएव दो वर्ण व्यवस्था से भी धर्म के संशयों का निर्धारण हो सकता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो धर्मयुक्त व्यवहार, मनुस्मृति आदि में प्रत्यक्ष न कहे हो, यदि उनमें शंका होवे तो तुम जिसको शिष्ट, आप्त, विद्वान कहें उसी को शंकारहित कर्त्तव्य-धर्म मानो ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जहां धर्म स्पष्ट न हो अर्थात् यह पता न चलता हो कि अमुक कर्म करना धर्म है या अधर्म, वहाँ ”शिष्ट ब्राह्मण“ जो कह दें उसी को निःसन्देह धर्म समझना चाहिये।
 
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