Manu Smriti
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आर्षं धर्मोपदेशं च वेदशास्त्राविरोधिना ।यस्तर्केणानुसंधत्ते स धर्मं वेद नेतरः ।।12/106

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद और स्मृति इन दोनों को उत्तम तर्क से जो प्राप्त करता है अर्थात् उनके सत्यार्थ को जानता है वही धर्म ज्ञाता है दूसरा नहीं।
टिप्पणी :
सब वेद तथा शास्त्रों का सार यह है कि प्रकृति के विषयों से दुःख उत्पन्न होता है और परमात्मा के योग से सुख उत्पन्न होता है जितना प्रकृति विषयों का अधिक भोग होगा उतना ही बन्धन बढ़ता जायेगा और उसके दुःख भी बढ़ता जावेगा और जितना विषयों से पृथक् रह कर ईश्वरोपासना में लगेगा उतना ही दुःखों से बच कर शान्ति लाभ करेगा।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो मनुष्य ऋषिविहित धर्मोपदेश अर्थात् धर्म-शास्त्र का वेदशास्त्र के अनुकूल तर्क के द्वारा अनुसंधान करता है वही धर्म के तत्व को समझ पाता है, अन्य नहीं ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जो ऋषि उपदिष्ट धर्मोपदेश का वेद-शास्त्र के अविरोधी तर्क के द्वारा अनुसन्धान करता है वही धर्म को जानता है अन्य नहीं।
 
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