Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सेनापति (अर्थात् सिपहसालार) का कार्य राज्य दण्ड विधान सब लोगों का आविपत्य विधान वेद शास्त्र ज्ञाता उत्तम और उचित रूप से स्थित कर सकता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
सब सेना और सेनापतियों के ऊपर राज्याधिकार, दंड देने की व्यवस्था के सब कार्यों का आधिपत्य और सब के ऊपर वर्तमान सर्वाधीश राज्याधिकार, इन चारों अधिकारों में सम्पूर्ण वेद-शास्त्रों में प्रवीण, पूर्णविद्या वाले, धर्मात्मा, जितेन्द्रिय, सुशील जनों को स्थापित करना चाहिए अर्थात् मुख्य सेनापति, मुख्य राज्याधिकारी, मुख्य न्यायाधीश, और प्रधान राजा, ये चार सब विद्याओं में पूर्ण विद्वान् होने चाहिए ।
टिप्पणी :
’जो वेदशास्त्रवित्, धर्मात्मा, जितन्द्रिय, न्यायकारी और आत्मा के बल से युक्त पुरुष होवे उसी को सेना, राज्य, दण्डनीति और प्रधान पद का अधिकार देना, अन्य क्षुद्राशयों को नही ।’
अनुशीलन- यहां वेदशास्त्रवित् अर्हति का अर्थ वेदशास्त्र का ज्ञाता ही उसके योग्य हो सकता है’ यह है । ऋषि दयानन्द ने इसे प्रेरणार्थ रूप में निरूपित किया है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वेद-शास्त्र का जानने वाला सेनापतित्व, राज्य और दण्ड नेतृत्व तथा सबके आधिपत्य का अधिकारी है।