Manu Smriti
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चातुर्वर्ण्यं त्रयो लोकाश्चत्वारश्चाश्रमाः पृथक् ।भूतं भव्यं भविष्यं च सर्वं वेदात्प्रसिध्यति ।।12/97

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
चारों वर्ण तीनों लोक, पृथक-पृथक, चारों आश्रम भूत भविष्य वर्तमान जो कुछ कर्म है वह सब वेद ही से प्रसिद्ध होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
चार वर्ण, चार आश्रम, भूत, भविष्यत और वर्तमान आदि की सब विद्या वेदों से ही प्रसिद्ध होती है । (ऋ. भा. भू. वेदविषयविचार)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
चारों वर्ण, तीन लोक, चार आश्रम अलग-अलग, भूत, वर्तमान और भविष्य का धर्म यह सब वेद से सिद्ध होता है।
 
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