Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
आप लोगों की बनायी सब पुस्तकें नाशवान् हैं वह सब समय के साथ परिवर्तन शील हैं क्योंकि मूर्खता से भरे हुये हैं केवल वेद अनुकूल पुस्तक ही नित्य हैं क्योंकि उनका मूल वेद नित्य है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो इन वेदों से विरुद्ध ग्रन्थ उत्पन्न होते है वे आधुनिक होने से शीघ्र नष्ट हो जाते है, उनका मानना निष्फल और झूठा है ।
टिप्पणी :
अनुशीलन- यहां वेदविरुद्ध ग्रन्थों के आधुनिक होने से अभिप्राय यह है कि वेदों की मान्याएं प्राचीनतम एवं सनातन है, किन्तु वेदविरुद्ध ग्रन्थों की मान्यताएं परवर्ती है । और वे सत्य न होने से बनती है, फिर नष्ट हो जाती है, वेदों की मान्यताएओं की तरह सनातन नहीं । टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
अन्य वेदविरुद्ध ग्रन्थ तो बनते और लुप्त होते रहा करते हैं। वे पीछे उत्पन्न होने के कारण निष्फल भी हैं और झूठ भी।