Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद सदा पितृ व देवता व मनुष्यों के नेत्र हैं। वेद व शास्त्र दोनों संशय के योग्य नहीं हैं और न तर्क करने के योग्य हैं। ये शास्त्र की मर्यादा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
पितर=पालक राजा आदि (द्रष्टव्य 12/100) विद्वान् और अन्य मनुष्यों का वेद सनातन नेत्र=मार्ग-प्रदर्शक है, और वह अशक्य अर्थात् जिसे कोई पुरुष नहीं बना सकता इस प्रकार अपौरुषेय हैं, तथा अनन्त सत्यविद्याओं से युक्त है, ऐसी निश्चित मान्यता है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
पितृ, देव और मनुष्यों की सनातन चक्षु वेद है। वेदशास्त्र अशक्य अर्थात् अपौरुषेय और अप्रमेय अर्थात् मनुष्य की तर्कशक्ति से भी ऊपर है। (इति स्थितः) वह है सिद्धान्त।