Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
ब्राह्मण अर्थात् ब्रह्मज्ञानी अग्निहोत्र आदि कर्मों को त्याग करके ब्रह्म ध्यान इन्द्रियों को जीतना प्रणव उपनिषद आदि वेदाभ्यास इन सब में प्रयत्न करें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
श्रेष्ठ द्विज उसके लिए विहित यज्ञ आदि कर्मों को (संन्यासी अवस्था में) छोड़कर(6/34, 43) भी परमात्म-ज्ञान, इन्द्रियसंयम (2/68-75) और वेदाभ्यास में प्रयत्नशील अवश्य रहे अर्थात् इनको किसी भी अवस्था में न छोड़े ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(द्विजोत्तमः) सन्यासी को चाहिये कि शास्त्रोक्त कर्मों का (परिहाय) परित्याग अर्थात् सन्यास करने पर भी आत्म-ज्ञान और शम तथा वेदाभ्यास में यत्न करता रहे। अर्थात् आत्म-ज्ञान और वेदाभ्यास सन्यासी को भी कभी छोड़ना नहीं चाहिये।