Manu Smriti
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उत्पादकब्रह्मदात्रोर्गरीयान्ब्रह्मदः पिता ।ब्रह्मजन्म हि विप्रस्य प्रेत्य चेह च शाश्वतम् ।2/146

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जन्म दाता और वेद पढ़ाने वाल दोनों में से वेद पढ़ाने वाला बड़ा है। वेद पढ़ने से जो जन्म होता है वह जन्म अविनाशी है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
उत्पादक - ब्रह्मदात्रोः उत्पन्न करने वाले पिता और विद्या या वेद - ज्ञान देने वाले पिता आचार्य में ब्रह्मदः पिता गरीयान् वेदज्ञान देने वाला पिता ही अधिक बड़ा और माननीय है हि क्यों कि विप्रस्य द्विज का ब्रह्मजन्म शरीर जन्म की अपेक्षा ब्रह्मजन्म उपनयन में दीक्षित करके वेदाध्ययन कराके वर्ण निर्धारित करना ही इह च प्रेत्य शाश्वतम् इस जन्म और परजन्म में स्थिर रहने वाला है अर्थात् शरीर तो इस जन्म के साथ ही नष्ट हो जाता है किन्तु विद्या के संस्कार परजन्मों तक साथ रहते हैं ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
१३) उत्पादक और वेदाध्यापक, इन दोनों में से वेदाध्यापक श्रेष्ठ पिता है, क्योंकि ब्रह्मचारी का जो वेदाध्ययन-जन्य द्वितीय जन्म है, वह परजन्म और इहजन्म दोनों में स्थिर है।
 
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