प्रवृत्तं कर्म संसेव्यं देवानां एति साम्यताम् ।निवृत्तं सेवमानस्तु भूतान्यत्येति पञ्च वै ।।12/90 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रवृत्ति कर्म करने में देवताओं के समान होता है और निवृत्त कर्म करने से पृथिवी आदि पंचभूतों को विजय करता है अर्थात् पंचभूतों से जन्म होता है उनको विजय करने से फिर जन्म नहीं होता।