Manu Smriti
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इह चामुत्र वा काम्यं प्रवृत्तं कर्म कीर्त्यते ।निष्कामं ज्ञातपूर्वं तु निवृत्तं उपदिश्यते ।।12/89
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस लोक और परलोक में मनवांछित फल प्राप्त करने के अभिप्राय से जो कर्म है वह प्रवृत्ति कहलाता है और ज्ञानपूर्वक जो कर्म है वह निवृत्ति कहलाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस लोक या परलोक के लिये जो सकाम कर्म किया जाता है, वह ”प्रवृत्त“ कम कहलाता है। और जो ज्ञानपूर्वक तथा निष्काम भाव से कर्म किया जाता है वह ”निवृत्त“ है।
 
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