Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस लोक और परलोक में मनवांछित फल प्राप्त करने के अभिप्राय से जो कर्म है वह प्रवृत्ति कहलाता है और ज्ञानपूर्वक जो कर्म है वह निवृत्ति कहलाता है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इस लोक या परलोक के लिये जो सकाम कर्म किया जाता है, वह ”प्रवृत्त“ कम कहलाता है। और जो ज्ञानपूर्वक तथा निष्काम भाव से कर्म किया जाता है वह ”निवृत्त“ है।