Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वैदिक कर्म दो प्रकार का है एक निवृत्त और दूसरा प्रवृत्ति अर्थात् दुष्कर्मों से पृथक् रहना पूर्ति है और शुभ कर्मों का करना प्रवृत्ति है वा यह कि जिन कर्मों का फल संसार में प्राप्त होता है, जो शरीर कारण है वह कर्म प्रवृत्ति कहलाते हैं और जो ब्रह्मज्ञान के कर्म मुक्ति लाभ करने के हेतु किये जाते हैं, जिसमें आकाश आदि के द्वारा से संसार के सब कर्मों से निवृत्ति अर्थात् पृथकता होती है वह निवृत्त कहलाते हैं और उनका फल इन्द्रियों के भोगों से पृथक रखने वाली मुक्ति होती है।
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सुख का अभ्युदय करने वाले और मोक्ष के देने वाले वैदिक कर्म दो तरह के हैं:-
(1) एक प्रवृत्त (2) निवृत्त