Manu Smriti
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वैदिके कर्मयोगे तु सर्वाण्येतान्यशेषतः ।अन्तर्भवन्ति क्रमशस्तस्मिंस्तस्मिन्क्रियाविधौ ।।12/87
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इस वैदिक ज्ञान अर्थात् ब्रह्म के साथ लोक में यह सब वेदाभ्यास आदि समाप्त हो जाते हैं अर्थात् जब ब्रह्मोपासना प्राप्त हुई तब कुछ साधन शेष नहीं रहता।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
वैदिक कर्म-योग अर्थात् वेदाभ्यास के अन्तर्गत उस-उस क्रियाविधि के सम्बन्ध में सभी कर्म आ जाते हैं।
 
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