Manu Smriti
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षण्णां एषां तु सर्वेषां कर्मणां प्रेत्य चेह च ।श्रेयस्करतरं ज्ञेयं सर्वदा कर्म वैदिकम् ।।12/86
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
प्रथम कहे हुये छः कर्मों में वेदानुसार कर्म अर्थात् आत्मज्ञान सब से श्रेष्ठ है और इससे संसार में सुख और मृत्यु के उपरान्त मुक्ति लाभ होता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन सब छः कर्मों में (प्रेत्य च इह च) परलोक और इस लोक दोनों की अपेक्षा से वैदिक कर्म अर्थात् वेदाभ्यास को ही अधिक कल्याणकारी समझना चाहिये।
 
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