Manu Smriti
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सर्वेषां अपि चैतेषां आत्मज्ञानं परं स्मृतम् ।तद्ध्यग्र्यं सर्वविद्यानां प्राप्यते ह्यमृतं ततः ।।12/85

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सब कर्मों में आत्मज्ञान श्रेष्ठ समझना चाहिये क्योंकि यह सब से उत्तम विद्या है और अविद्या का नाश करती है और जिससे अमृत अर्थात् मुक्ति प्राप्त होती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
इन सब (12/83) कर्मों मे परमात्मज्ञान सर्वश्रेष्ठ कर्म माना है, यह सब विद्याओं में सर्वप्रमुख कर्म है जिससे मुक्ति प्राप्त होती है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
इन छः कर्मों में आत्मज्ञान सब से उत्कृष्ट है। वह सब विद्याओं से बढ़कर है, उसी से अमृत पद अर्थात् मोक्ष मिलता है।
 
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