Manu Smriti
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एष सर्वः समुद्दिष्टः कर्मणां वः फलोदयः ।नैःश्रेयसकरं कर्म विप्रस्येदं निबोधत ।।12/82

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मैंने यह सब सारे कर्मों के फल को वर्णन किया तदनन्तर अब ब्राह्मण के मोक्ष देने वाले कर्म को वर्णन करता हूँ।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यह (12/3-81) कर्मों के फल का उद्भव सम्पूर्ण रूप में तुमसे कहा । अब विद्वानों या ब्राह्मण आदि द्विजों के (निःश्रेयसकरं कर्म निबोधत-) मोक्षदायक कर्मों को सुनो ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह सब तुमको कर्मों का फलोदय बताया गया। अब ब्राह्मण का वह कर्म सुनो जिससे निश्रेयस अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
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