Manu Smriti
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जरां चैवाप्रतीकारां व्याधिभिश्चोपपीडनम् ।क्लेशांश्च विविधांस्तांस्तान्मृत्युं एव च दुर्जयम् ।।12/80
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
अप्रतीकार (औषधि न होने वाली) व्याधि व जरा (बुढ़ापा) से दुख व विविध प्रकार (नाना भाँति) के कष्ट उठाने के उपरान्त मृत्यु इन सबको पाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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