Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
बान्धवों तथा प्रिय लोगों से वियोग, दुर्जनों का संसर्ग व रहन सहन तथा धन का संचित होना तदनन्तर उसका लोप (नाश) हो जाना, मित्र शत्रु का मिलना इन सब को पाते हैं।
टिप्पणी :
धन संचय होकर नाश हो जाना एक बड़ा भारी क्लेश है और धन किसी के पास भी तीन पीढ़ी (पुस्त) से अधिक नहीं ठहरता अतएव इससे पूरा दुःख है तथा आत्मा को कुछ लाभ नहीं हो सकता अतः लक्ष्मी की अभिलाषा करने वालों को धर्म के कार्यों में लगना चाहिये।