Manu Smriti
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संभवांश्च वियोनीषु दुःखप्रायासु नित्यशः ।शीतातपाभिघातांश्च विविधानि भयानि च ।।12/77
यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सदैव अति दुख वाली गर्हित (दूषित) नालियों में उत्पत्ति, शील, तप (गर्मी) से दुख और विविध प्रकार के भय पाते हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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