विविधाश्चैव संपीडाः काकोलूकैश्च भक्षणम् ।करम्भवालुकातापान्कुम्भीपाकांश्च दारुणान् ।।12/76 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
और विविध प्रकार के शोक व दुःख को प्राप्त करते हैं कौवा, व उल्लू पक्षी उनको भक्षण करते हैं, उष्ण (गर्म) बालू की उष्णता को प्राप्त होते हैं, अत्यन्त भीषण कुम्भी पाक नाम नरक के दुख भोगा करते हैं।