तामिस्रादिषु चोग्रेषु नरकेषु विवर्तनम् ।असिपत्रवनादीनि बन्धनछेदनानि च ।।12/75 यह श्लोक प्रक्षिप्त है अतः मूल मनुस्मृति का भाग नहीं है
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तामिस्र नाम मूर्खता से व्याप्त जो अर्थात् अति दुःख देने वाला नरक में जिसका वर्णन अध्याय 4 के 89 तथा 90 श्लोकों में किया है जिसमें शरीर अंगों आदि का बांधना आदि दुःखों में दुःख पाते हैं।