Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
फिर वे मन्दबुद्धि मनुष्य उन विषयों से उत्पन्न पापकर्मों को बारम्बार करते हैं, और उसके कारण पुनः पापकर्मों से प्राप्त होने वाली उन-उन योनियों में अर्थात् जिस पाप से जो योनि प्राप्त होती है (12/39-51) उसको प्राप्त करके इसी संसार में दुःखों को भोगते है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार