Manu Smriti
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तेऽभ्यासात्कर्मणां तेषां पापानां अल्पबुद्धयः ।संप्राप्नुवन्ति दुःखानि तासु तास्विह योनिषु ।।12/74

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
पाप कर्मों के अभयस्त होकर उन्हीं शरीरों में बहुत बार के दुःखों को भोगते हैं वह सब निर्बुद्धि है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
फिर वे मन्दबुद्धि मनुष्य उन विषयों से उत्पन्न पापकर्मों को बारम्बार करते हैं, और उसके कारण पुनः पापकर्मों से प्राप्त होने वाली उन-उन योनियों में अर्थात् जिस पाप से जो योनि प्राप्त होती है (12/39-51) उसको प्राप्त करके इसी संसार में दुःखों को भोगते है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
यह निर्बुद्धि लोग उन-उन कर्मों के अभ्यास से उन-उन योनियों में दुःख उठाते हैं।
 
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