Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
विषयों में आत्मा को लगाने वाला मनुष्य जिस-जिस प्रकार विषयों का सेवन करता है उस-उस प्रकार विषयों में कुशल होता है।
टिप्पणी :
श्लोक में जो विषयों में कुशल होना लिखा है उसके अर्थ विषयों में आसक्त होने के हैं और उसके साधन के सामान पर अधिकार प्राप्त कर लेना परन्तु विषय से सुरवाशा न रखनी चाहिये। विषय की इच्छा यद्यर्पि विषय साधन जुटाने में चतुर हैं परन्तु वास्तव में बुद्धिहीन हो जाता है क्योंकि बुद्धि स्वतंत्रता चाहती है और विषयेच्छा परतन्त्र बनाती है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
विषयी स्वभाव के मनुष्य जैसे-जैसे विषयों का सेवन करते जाते है वैसे-वैसे उन विषयों में उनकी आसक्ति अधिक बढती जाती है।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार