Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यः ब्रह्मणा जो गुरू या आचार्य वेदज्ञान के द्वारा उभौ श्रवणौ अवितथम् आवृणोति दोनों कानों को भली भांति परिपूर्ण करता है सुनाता - पढ़ाता है सः माता सः पिता ज्ञेयः से माता, पिता समझना चाहिए तं कदाचन न द्रुह्येत् और उससे कभी द्रोह ईष्र्या -अपमान न करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उपर्युक्त आचार्यादिकों में से जो सत्यरूप वेद से दोनों कानों को भरपूर करता है, उसे ब्रह्मचारी माता पिता समझे। उससे द्रोह कभी न करे।