Manu Smriti
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य आवृणोत्यवितथं ब्रह्मणा श्रवणावुभौ ।स माता स पिता ज्ञेयस्तं न द्रुह्येत्कदा चन ।2/144

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जो दोनों कानों को वेद से भरता है वह माता पिता वत् है। उससे कभी शत्रुता न करनी चाहिए।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
. यः ब्रह्मणा जो गुरू या आचार्य वेदज्ञान के द्वारा उभौ श्रवणौ अवितथम् आवृणोति दोनों कानों को भली भांति परिपूर्ण करता है सुनाता - पढ़ाता है सः माता सः पिता ज्ञेयः से माता, पिता समझना चाहिए तं कदाचन न द्रुह्येत् और उससे कभी द्रोह ईष्र्या -अपमान न करे ।
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
उपर्युक्त आचार्यादिकों में से जो सत्यरूप वेद से दोनों कानों को भरपूर करता है, उसे ब्रह्मचारी माता पिता समझे। उससे द्रोह कभी न करे।
 
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