Manu Smriti
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इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन धर्मस्यासेवनेन च ।पापान्संयान्ति संसारानविद्वांसो नराधमाः ।।12/52

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
इन्द्रियों की वासना (प्रसंग) में पड़ कर धार्मिक कर्म न करने से तथा पाप कर्मों को करता हुआ विद्या से रहित मनुष्य नीच गति को पाता है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो इन्द्रियों के वश होकर विषयी धर्म को छोड़कर अधर्म करने हारे अविद्वान है वे मनुष्यों में नीच जन्म, बुरे-बुरे दुःखरूप जन्म को पाते हैं ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
मूर्ख नीच लोग इन्द्रियों के वश में फँसकर और धर्म का सेवन न करके पापी योनियों को प्राप्त करते हैं।
 
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