Manu Smriti
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एष सर्वः समुद्दिष्टस्त्रिप्रकारस्य कर्मणः ।त्रिविधस्त्रिविधः कृत्स्नः संसारः सार्वभौतिकः ।।12/51

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
मन, वाणी, देह, तीनों कर्म के साधन में अर्थात् इन तीनों के द्वारा कर्म होते हैं। इनके भेद से तीन प्रकार के कर्म सत, रज, तम नाम वाले हुए फिर उत्तम, मध्यम, नीच के विभाग से प्रत्येक की तीन गति हुई जिनका योग नौ होता है। सारा संसार पंचभूत से उत्पन्न है उसको तीन में दिखाने के हेतु कहा। इससे जो कहने से रह गया वह गति भी दूसरी पुस्तक से देखने के योग्य है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
मन, वचन, शरीर के भेद से तीन प्रकार के कर्मों का सतोगुण, रजोगुण औऱ तमोगुण नामक तीन प्रकार का फल , तथा फिर उनकी उत्तम, मध्यम, अधम भेद से तीन-तीन गतियों वाले सर्वभूतयुक्त सम्पूर्ण संसार की उत्पत्ति का यह पूर्ण वर्णऩ किया ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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