Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यः यथाविधि जो विधि - अनुसार निषेकादीनि कर्माणि करोति गर्भाधान आदि संस्कारों को करता है च तथा अन्नेन संभावयति अन्न आदि भोज्य पदार्थों द्वारा बालक का पालन - पोषण करता है स विप्रः वह विद्वान् द्विज गुरूः उच्यते गुरू कहलाता है ।
टिप्पणी :
‘‘जो वीर्यदान से ले के भोजनादि कराके पालन करता है, इससे पिता को ‘गुरू’ कहते हैं ।’’
(द० ल० आ० पृ० २७६)
‘‘निषेक - अर्थात् ऋतु - प्रदान यह प्रथम संस्कार है । पिता निषेक करता है, इसलिए पिता ही मुख्य गुरू है ।’’
(पू० प्र० पृ० ७७)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
जो बालक के गर्भाधानादि संस्कारों को यथाविधि करता और उसका अन्नादि से पोषण करता है, उस विद्वान् पिता को ‘गुरु’ कहते हैं।१
१. वेदविरुद्धमतखण्डन और आर्योद्देश्यरत्नमाला।