Manu Smriti
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यज्वान ऋषयो देवा वेदा ज्योतींषि वत्सराः ।पितरश्चैव साध्याश्च द्वितीया सात्त्विकी गतिः ।।12/49

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
यज्ञकत्र्ता, ऋषि, देवता, वेदज्ञाता, ज्योतिषी पत्रा बनाने वाले वत्सर अर्थात् रक्षा करने वाले पितर, साधना करने वाले यह सब सतोगुणी की मध्यम गति में हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो मध्यम सत्वगुणयुक्त होकर कर्म करते हैं वे जीव यज्ञकर्ता, वेदार्थवित् विद्वान्, वेद, विद्युत आदि, और कालविद्या के ज्ञाता, रक्षक, ज्ञानी और साध्य=कार्यसिद्धि के लिए सेवन करने योग्य अध्यापक का जन्म पाते हैं ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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