Manu Smriti
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तापसा यतयो विप्रा ये च वैमानिका गणाः ।नक्षत्राणि च दैत्याश्च प्रथमा सात्त्विकी गतिः ।।12/48

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तापस (तप करने वाले), संयमी, व्रती ब्राह्मण और विमान पर चढ़कर घूमने वाले, नक्षत्र, दैत्य (आचरणहीन विद्वान) वरन् प्रतिकूल आचरणी यह सब सतोगुण की नीच गतिमय है।
टिप्पणी :
राक्षस वह है जो हिंसा और विग्रह का प्रेमी हो। पिशाच उसे कहते हैं जो निर्दयता और क्रोध के कारण शुभाशुभ की पहिचान न रखता हो।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो तपस्वी, यदि, संन्यासी, वेदपाठी, विमान के चलाने वाले, ज्योतिषी, और दैत्य अर्थात् देहपोषक मनुष्य होते हैं उनको प्रथम सत्वगुण के कर्म का फल जानो ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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