Manu Smriti
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चारणाश्च सुपर्णाश्च पुरुषाश्चैव दाम्भिकाः ।रक्षांसि च पिशाचाश्च तामसीषूत्तमा गतिः ।।12/44

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
भाट, छली व कपटी मनुष्य, राक्षस, पिशाच इन सबको तामसी उत्तम गति जानना।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो उत्तम तमोगुणी हैं वे चारण=जो कि कवित्त, दोहा आदि बनाकर मनुष्यों की प्रशंसा करते हैं, सुन्दर पक्षी, दाम्भिक पुरुष अर्थात् अपने सुख के लिए अपनी प्रशंसा करने हारे, राक्षस जो हिंसक, पिशाच=अनाचारी अर्थात् मद्य आदि के आहारकर्ता और मलिन रहते है वह उत्तम तमोगुण के कर्म का फल है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
 
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