Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सतोगुण आदि से जो तीन प्रकार की दशा वर्णन की गई है वह भी इन तीनों गुणों की न्यूवता वा अधिकता से, उत्तम, मध्यम, नीच तीन प्रकार की है। और उनमें देशकाल का अन्तर भी एक कारण है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
ये तीन प्रकार की (सत्व, रज, तम) गतियाँ कर्म और विद्या की विशेषताओं के आधार पर प्रत्येक की पुनः अधम, मध्यम और उत्तम भेद से तीन-तीन प्रकार की गौण गतियाँ होती हैं ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार