Manu Smriti
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यत्सर्वेणेच्छति ज्ञातुं यन्न लज्जति चाचरन् ।येन तुष्यति चात्मास्य तत्सत्त्वगुणलक्षणम् ।।12/37

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस कर्म को करते हुए लज्जा नहीं होती और जिस कर्म को करके पुरुष की आत्मा आनन्दित और तृप्त होती है उस कर्म को सतोगुण का लक्षण जानें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
और जब मनुष्य का आत्मा सब से जानने को चाहे, गुण ग्रहण करता जाये, अच्छे कामों में लज्जा न करे और जिस कर्म से आत्मा प्रसन्न होवे अर्थात् धर्माचरण ही में रुचि रहे तब समझना कि मुझ में सत्वगुण प्रबल है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जिस कर्म से ज्ञान की इच्छा बढ़े और किसी प्रकार की लज्जा न अनुभव हो, और जिससे आत्मा को संतोष हो वह सत्व-गुण है।
 
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