Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जिस कार्य के करने से इस लोक में बड़ा यश प्राप्ति की इच्छा करता है और निर्धन होने का किंचित सोच नहीं करता उस कार्य को रजोगुण का चिन्ह समझें।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जिस कर्म से इस लोक में जीवात्मा पुष्कल प्रसिद्धि चाहता, दरिद्रता होने में भी चारण, भाट आदि को (अपनी प्रसिद्धि के लिए) दान देना नहीं छोड़ता, तब समझना कि मुझ में रजोगुण प्रबल है ।
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
जिस कर्म से इस लोक में बड़ी ख्याति (नामवरी) की इच्छा होती है और सम्पत्ति नष्ट होने पर भी सोच नहीं होता उसको रजोगुण समझना चाहिये।