Manu Smriti
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त्रयाणां अपि चैतेषां गुणानां त्रिषु तिष्ठताम् ।इदं सामासिकं ज्ञेयं क्रमशो गुणलक्षणम् ।।12/34

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
तीनों गुणों के भूत भविष्य व वर्तमान में रहने की दशा में जो फल और चिन्ह हैं वह प्रत्येक मनुष्य के हेतु जानने योग्य हैं। अर्थात् किस गुण के क्या फल हैं और भविष्य में उसका परिणाम क्या होगा, पूर्व में किस प्रकार हुआ है और वर्तमान समय में इस गुण वालों की क्या दशा है।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
तीनों कालों (भूत, भविष्यत् और वर्तमान) में विद्यमान रहने वाले इन तीनों गुणो के ’गुणलक्षण’ को क्रमशः संक्षेप में इस प्रकार समझे—
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(त्रिषु तिष्ठताम्) इन मन, वाणी तथा शरीर में ठहरे हुए इन तीनों गुणों का क्रमशः संक्षिप्त रीति से यह गुण लक्षण समझना चाहिये।
 
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