Manu Smriti
 HOME >> SHLOK >> COMMENTARY
आरम्भरुचिताधैर्यं असत्कार्यपरिग्रहः ।विषयोपसेवा चाजस्रं राजसं गुणलक्षणम् ।।12/32

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
कार्यारम्भ करने की इच्छा, धैर्य न होना, असत् कार्यों में संलग्नता और उनको परिग्रहण करना, विषयों का सेवन करना यह सब रजोगुण के चिन्ह हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब रजोगुण का उदय, सत्वगुण और तमोगुण का अन्तर्भाव होता है तब धैर्यत्याग, असत् कर्मों का ग्रहण, निरन्तर विषयों की सेवा में प्रीति होती है तभी समझना कि रजोगुण प्रधानता से मुझ में वर्त रहा है । (स. प्र. नवम समु.)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
रजोगुण के लक्षण यह हैं-पहले किसी काम में रुचि हो फिर धैर्य न रहे, बुरे काम में प्रवृत्ति, निरन्तर विषय-वासना।
 
NAME  * :
Comments  * :
POST YOUR COMMENTS