Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
वेद पढ़ना, तप, ज्ञान, शुचिता (पवित्रता) इन्द्रिय-निग्रह (जितेन्द्रिय होना) धर्म कर्म अर्थात् वेदशास्त्रानुसार कार्य करना, आत्मचिन्तन, सतोगुण के चिन्ह हैं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जो वेदों का अभ्यास, धर्मानुष्ठान, ज्ञान की वृद्धि पवित्रता की इच्छा, इन्द्रियों का निग्रह(धर्म क्रिया च आत्मचिन्ता) धर्मक्रिया और आत्मा का चिन्तन होता है यही सत्व गुण का लक्षण है । (स. प्र. नवम समु.)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सत्वगुण के लक्षण यह हैं:- वेदाभ्यास, तप, ज्ञान, शौच, इन्द्रिय-निग्रह, धर्म, क्रिया, आत्मचिन्ता ।