Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
यः उपनीय तु जो यज्ञोपवीत कराके सकल्पं च सरहस्यम् कल्पसूत्र और वेदान्तसहित शिष्यं वेदम् अध्यापयेत् शिष्य को वेद पढ़ावे तम् आचार्य प्रचक्षते उसको आचार्य कहते हैं ।
(द० ल० वे० पृ० ४)
टिप्पणी :
‘‘जो ब्राह्मण, क्षत्रिय अथवा वैश्य गुरू अपने शिष्य को यज्ञोपवीत आदि धर्म क्रिया कराने के बाद वेद को अर्थ और कलासहित पढ़ावे तो ही उसको आचार्य कहना चाहिए ।’’
(द० ल० शि० पृ० ८९)
Commentary by : पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
(१२) जो ब्राह्मण उपनयनसंस्कार कराके शिष्य को कर्मकाण्ड और ज्ञानकाण्ड सहित वेद पढ़ावे, उसे ‘आचार्य’ कहते हैं।१
१. वेदविरुद्धमतखण्डन और आर्योद्देश्यरत्नमाला।