Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
जब आत्मा को मोह संयुक्त और विषय वासना में लिप्त देखें तब तमोगुण प्रधान जानें वह तमोगुण अतक्य (तर्क के योग्य नहीं) और जानने के योग्य नहीं है।
टिप्पणी :
श्लोक में आत्म से महत्व अर्थात् मन से अभिप्राय है जीवात्मा से नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब मोह अर्थात् सांसारिक पदार्थों में फंसा हुआ आत्मा और मन हो, जब आत्मा और मन में कुछ विवेक न रहे, विषयों में आसक्त, तर्क-वितर्क रहित, जानने के योग्य न हो, तब निश्चय समझना चाहिए कि इस समय मुझ में तमोगुण प्रधान, और सत्वगुण तथा रजोगुण अप्रधान है । (स. प्र. नवम समु.)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
(1) मोहसंयुक्त-मूढ़ता, (2) अव्यक्त-अनिश्चितत, (3) विषयात्मकत्व-विषयों में फंसने की प्रवृत्ति, (4) अप्रतक्र्य-तर्क न कर सकना, (5) अविज्ञेयम्-किसी बात का समझ में न आना।