Manu Smriti
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सत्त्वं ज्ञानं तमोऽज्ञानं रागद्वेषौ रजः स्मृतम् ।एतद्व्याप्तिमदेतेषां सर्वभूताश्रितं वपुः ।।12/26

 
Commentary by : स्वामी दर्शनानंद जी
सत् ज्ञात है, तम अज्ञान है, राग (अर्थात् इच्छित वस्तु की अभिलाषा) और द्वैष ( अर्थात् अनिच्छित वस्तु से घृणा) यह दोनों रज हैं। संसार इन तीनों गुणों से सारा घिरा हुआ (व्याप्त) है।
टिप्पणी :
श्लोक में आत्म से महत्व अर्थात् मन से अभिप्राय है जीवात्मा से नहीं।
Commentary by : पण्डित राजवीर शास्त्री जी
जब आत्मा में ज्ञान हो तब सत्व, जब अज्ञान रहे तब तम, और जब राग-द्वेष में आत्मा लगे तब रजोगुण जानना चाहिए ये तीन प्रकृति के गुण सब संसारस्थ पदार्थों में व्याप्त हैं ।(स. प्र. नवम समु.)
टिप्पणी :
पण्डित चन्द्रमणि विद्यालंकार
Commentary by : पण्डित गंगा प्रसाद उपाध्याय
सत्वगुण ज्ञान है, तमोगुण अज्ञान है, रजोगुण राग तथा द्वेष है। (एतेषाम्) इन प्राणियों का (सर्वभूत + आश्रितम् वपुः) सब अर्थात् पंच भूतों के आश्रित शरीर (एतद्-ख्याति-मत्) इन्हीं गुणों से ओतप्रोत है।
 
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